Mere Yishu / मेरे यीशु Hindi Christian Song Lyrics

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Mere Yishu / मेरे यीशु Christian Song Lyrics

Song Credits:

Lyrics: Paul Thomas Mathews & Christy Paul Mathews from Psalm 63 Lead

Vocals: Anna Shalom

Backing Vocals : Shalom Naik

 Music Producer: Shalom Naik Acoustic

Guitar: Bibek Tudu

Drums & Percussion: Benjamin Mathew

Flute: Sidharth

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Lyrics:

[ मेरे यीशु मैं तेरे लिए प्यासा और अति अभिलाषी ]|2|

[ मैं शांत रहकर तुझे ताकता रहूँगा

तेरी ओर मन लगाए रहूँगा ]|2||मेरे यीशु ||


[ मैंने पवित्र स्थान में तुझ पर दृष्टि की

 ताकि तेरी महिमा को मैं देख सकूँ 

तेरे सामर्थ को मैं पहचान सकूँ ]|2|


[ तू मेरा परमेश्वर है मेरा सच्चा परमेश्वर है ]|2|

[ मैं शांत रहकर तुझे ताकता रहूँगा

दिल की बातें मैं तुझसे कहता रहूँगा ]|2||मेरे यीशु ||


[ तेरी करुणा जीवन से भी उत्तम है

तेरी प्रशंसा मैं नित करता रहूँ

तुझे धन्य जीवन भर मैं कहता रहूँ ]|2|

[ तेरा नाम लेकर हाथ उठाऊँ, मेरा सच्चा परमेश्वर तू है ]|2|

[ मैं शांत रहकर तुझे ताकता रहूँगा

दिल की बातें मैं तुझसे कहता रहूँगा ]|2||मेरे यीशु ||

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Full Video Song On Youtube:


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👉The divine message in this song👈

मेरे यीशु – आत्मिक प्यास और परमेश्वर की उपस्थिति

मानव जीवन की सबसे गहरी आवश्यकता केवल शारीरिक भोजन या सांसारिक सुविधाएँ नहीं हैं। वास्तव में हमारी आत्मा को जो तृप्ति मिलती है, वह केवल परमेश्वर की उपस्थिति से ही है। *“मेरे यीशु”* नामक यह गीत इसी सत्य को बड़ी सरलता से प्रकट करता है। भजन संहिता 63 से प्रेरित इस गीत में एक विश्वासी की आत्मिक प्यास, उसकी तड़प और उसके मन की गहराई से निकलने वाली प्रार्थना व्यक्त की गई है।

1. आत्मिक प्यास का महत्व

गीत का पहला अंश कहता है:

“मेरे यीशु मैं तेरे लिए प्यासा और अति अभिलाषी।”

भजन संहिता 63:1 में दाऊद गाता है – *“हे परमेश्वर, तू मेरा परमेश्वर है; मैं तुझी को यत्न से ढूँढ़ता हूँ; निर्जल और सूखी भूमि पर जहाँ जल नहीं है, मेरी आत्मा तुझको प्यासती और मेरा शरीर तुझे तरसता है।”*

यह प्यास साधारण नहीं, बल्कि आत्मिक प्यास है। जैसे एक हिरनी जल के लिए हाँफती है, वैसे ही आत्मा परमेश्वर की उपस्थिति के लिए तरसती है (भजन 42:1)। इस गीत के द्वारा विश्वासियों को यह स्मरण दिलाया जाता है कि यदि जीवन में वास्तव में तृप्ति चाहिए, तो हमें संसार की वस्तुओं से नहीं, बल्कि प्रभु यीशु से ही प्यास बुझानी होगी।

2. शांत होकर परमेश्वर की ओर ताकना

गीत आगे कहता है:

“मैं शांत रहकर तुझे ताकता रहूँगा, तेरी ओर मन लगाए रहूँगा।”

यह शब्द ध्यान और मनन की ओर ले जाते हैं। अक्सर हमारी प्रार्थनाएँ केवल बोलने में ही समाप्त हो जाती हैं, परंतु इस गीत में शांति से परमेश्वर की उपस्थिति में ठहरने की आवश्यकता दिखाई देती है।

भजन 46:10 कहता है – *“चुप हो जाओ, और जान लो कि मैं ही परमेश्वर हूँ।”* जब हम शांत होकर प्रभु की ओर ध्यान केंद्रित करते हैं, तब उसकी उपस्थिति का अनुभव करते हैं। यह गीत सिखाता है कि केवल माँगना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उसकी ओर शांत चित्त से देखना भी बहुत आवश्यक है।

3. पवित्र स्थान में उसकी महिमा देखना

गीत में गाया गया है:

“मैंने पवित्र स्थान में तुझ पर दृष्टि की ताकि तेरी महिमा को मैं देख सकूँ, तेरे सामर्थ को मैं पहचान सकूँ।”

दाऊद जब जंगलों में छिपा हुआ था, तब भी उसने पवित्रस्थान में परमेश्वर की महिमा देखने की इच्छा की। परमेश्वर की उपस्थिति केवल एक भवन तक सीमित नहीं, बल्कि जहाँ भी हम पूरे मन से उसे ढूँढ़ते हैं, वहाँ उसकी महिमा प्रगट होती है।

यशायाह 6:1-3 में भविष्यद्वक्ता ने भी पवित्रस्थान में परमेश्वर की महिमा देखी। इस गीत द्वारा गायक हमें यही याद दिलाता है कि जब हम आत्मा और सच्चाई से प्रभु की आराधना करते हैं, तब उसकी महिमा और सामर्थ को पहचानने लगते हैं।

 4. परमेश्वर के साथ व्यक्तिगत संबंध

गीत में यह भी आता है:

“तू मेरा परमेश्वर है, मेरा सच्चा परमेश्वर है।”

यहाँ केवल सामूहिक परमेश्वर की बात नहीं, बल्कि व्यक्तिगत परमेश्वर की अनुभूति है। यीशु केवल “हमारा” ही नहीं, बल्कि “मेरा” परमेश्वर भी है। जब विश्वासी इस व्यक्तिगत संबंध को पहचानता है, तब उसकी प्रार्थना और उपासना और भी गहरी हो जाती है।

यूहन्ना 20:28 में थोमा ने पुनर्जीवित मसीह को देखकर कहा – *“हे मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर।”* यह घोषणा व्यक्तिगत विश्वास की गवाही है। गीत हमें इसी व्यक्तिगत संबंध की ओर ले जाता है।

 5. करुणा का अनुभव

गीत में आगे यह अंश आता है:

“तेरी करुणा जीवन से भी उत्तम है।”

भजन 63:3 भी यही कहता है – *“तेरी करुणा जीवन से भी उत्तम है; इस कारण मेरे होंठ तेरा गुणगान करेंगे।”*

मानव जीवन अस्थायी है, परन्तु परमेश्वर की करुणा अनन्त है। जब हम अपने जीवन में उसकी दया और अनुग्रह का अनुभव करते हैं, तब हमें संसार की कोई भी वस्तु संतोष नहीं देती। उसकी करुणा हमें नया जीवन देती है।

 6. स्तुति और धन्यवाद का जीवन

गीत कहता है:

“तेरी प्रशंसा मैं नित करता रहूँ, तुझे धन्य जीवन भर मैं कहता रहूँ।”

आराधना केवल रविवार तक सीमित नहीं, बल्कि यह हमारे जीवन का निरंतर अंग होना चाहिए। इब्रानियों 13:15 में लिखा है – *“इसलिये हम यीशु के द्वारा परमेश्वर को सदा स्तुति की बलि चढ़ाया करें।”*

विश्वासी जब हर परिस्थिति में धन्यवाद करता है, तब वह संसार को दिखाता है कि उसकी आशा परमेश्वर पर ही है।

7. हाथ उठाकर आराधना

गीत में यह भी कहा गया है:

“तेरा नाम लेकर हाथ उठाऊँ, मेरा सच्चा परमेश्वर तू है।”

हाथ उठाना आत्मसमर्पण और स्तुति का प्रतीक है। 1 तीमुथियुस 2:8 कहता है – *“इसलिये मैं चाहता हूँ कि हर जगह पुरुष क्रोध और विवाद के बिना पवित्र हाथ उठाकर प्रार्थना करें।”*

जब विश्वासी हाथ उठाकर प्रभु की स्तुति करता है, तब यह केवल बाहरी क्रिया नहीं, बल्कि भीतर की आत्मा का समर्पण है।

 8. दिल की बातें यीशु से कहना

गीत का एक सुंदर अंश है:

“दिल की बातें मैं तुझसे कहता रहूँगा।”

यह हमारे व्यक्तिगत प्रार्थना जीवन का प्रतिबिंब है। जब हम अपने हृदय की गहराइयों को प्रभु के सामने उंडेलते हैं, तब हमें वास्तविक शांति मिलती है। फिलिप्पियों 4:6-7 बताता है कि जब हम अपनी सारी याचिकाएँ प्रभु के सामने रखते हैं, तब उसकी शांति हमारे मन और विचारों की रक्षा करती है।

 9. निष्कर्ष

“मेरे यीशु” गीत केवल एक स्तुति गीत नहीं, बल्कि आत्मा की गहरी पुकार है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारा जीवन परमेश्वर की उपस्थिति के बिना अधूरा है। उसकी करुणा जीवन से उत्तम है, उसकी उपस्थिति में हमें संतोष मिलता है, और उसकी स्तुति में हमें शक्ति मिलती है।

हर विश्वासी को इस गीत के शब्दों की तरह प्रतिदिन कहना चाहिए:

* मैं तेरे लिए प्यासा हूँ।

* मैं शांत रहकर तुझे ताकूँगा।

* मैं तुझसे दिल की बातें कहूँगा।

* तेरी करुणा जीवन से उत्तम है।

यही सच्ची आराधना और विश्वास का जीवन है।

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